-यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले चुनावी रणभूमि बनेगा
(सुरेश गांधी)
फिरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी एक बार फिर यूपी विधानसभा चुनाव- 2022 से पहले चुनावी रणभूमि बनेगा। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी रोहनिया विधानसभा क्षेत्र के जगतपुर कॉलेज से इसकी शुरुवात कर दी है। उनकी किसान न्याय रैली में जिस तरीके से बसपा की तर्ज पर बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटी, वह बताने के लिए काफी है कि भाजपा को कड़ी चुनौती मिलने वाली है। खासकर इस रैली के जरिए सपा-बसपा को भी मैसेज देने की कोशिश की गयी कि भाजपा को कांग्रेस ही चुनौती दे सकती है, उसे कमतर आंकने की भूल ना करें। यह अलग बात है कि गैर कांग्रेसी इस भीड़ को धनबल का जोर बता रहे है। लेकिन वे भूल गए कि भीड़ जुटाने के लिए वो भी तों धनबल सहित अन्य संसाधनों का इस्तेमाल करते रहे है। हालांकि यह कटू सत्य है भीड़ को वोट में बदलना कांग्रेस को नाको चने चबाने पड़ेंगे।
बहरहाल, प्रियंका ने अपने चुनावी अभियान के शंखनाद के लिए वाराणसी को यूं ही नहीं चुना है, बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति है। कांग्रेस को पता है कि वाराणसी जहां पीएम मोदी का चुनाव क्षेत्र होने से अहम है, वहीं पूर्वांचल के जिलों का केंद्र भी माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित महादेव हर हिंदू के दिल में बसे हैं और यहां से पूरे पूर्वांचल को साधा जा सकता है। कांग्रेस की कोशिश है कि पूर्वांचल में भी नए कृषि कानून सशक्त मुद्दा बने। मोदी के गढ़ में शक्ति प्रदर्शन कर कांग्रेस देश-प्रदेश में यह संदेश देना चाहती है कि उसे कमजोर न समझा जाए।
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बता दें, किसान न्याय रैली की सफलता के लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी। इसके नतीजे भी रैली में उमड़ी भारी भीड़ के रूप में नजर आए। रैली में बड़ी संख्या में लोग उमड़ पड़े। यहां तक की रैली में लोगों के बैठने के लिए लगाया गया पांडाल भी छोटा पड़ गया। जितने लोग अंदर बैठे थे उनसे कहीं अधिक लोग बाहर खड़े थे। जब प्रियंका बोल रही थी तो लोग पंडाल में जगह कम पड़ने से सड़कों पर जमा थे। खास यह है कि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने अपने सभी मतभेद दरकिनार कर एकजुटता का संदेश दिया। पूर्व सांसद राजेश मिश्रा ने रैली में उमड़ी भीड़ को ऐतिहासिक करार दिया। उन्होंने मंच साझा करते हुए केन्द्र और राज्य सरकार पर जमकर हमले बोले। भारी भीड़ देख सभी नेताओं का उत्साह बढ़ गया और उनकी वाणी जोश से लबरेज नजर आई। लेकिन सच यह है कि भीड़ और जिदाबाद के नारे वोट में बदल जाएंगे यह तो समय बताएगा। चूंकि जातीय गोलबंदी में उलझे मतदाता क्या निर्णय लेंगे इसका खुलासा तो मतदान के बाद मतगणना के दिन ही हो सकेगा।
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हालांकि किसान न्याय रैली में भाषण की शुरुआत में ही प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि दिल की बात करने आई हूं। बीते वर्षों में जो देखा उसका जिक्र कर रही हूं। दुर्गा मंत्रों के साथ भाषण की शुरुआत करते हुए प्रियंका ने लखीमपुर घटना, कृषि कानून, महंगाई समेत कई अन्य मुद्दों पर सरकार के खिलाफ करीब आधे घंटे के भाषण में हुंकार भरी। मोदी-योगी की सरकार पर कई आरोप भी लगाए।
हो जो भी सच तो यही है कांग्रेसी इसी तरह से यदि अपने जज्बे और संघर्ष को बरकरार रखा तो सपा-बसपा के मुकाबले कांग्रेस की स्थिति यूपी विधानसभा चुनाव में काफी हद मजबूत हो सकती है। रैली से उत्साहित पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का दावा है कि अब चुनाव तक यूपी में ही प्रियंका डेरा जमाए रखेंगी।
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इस दौरान पार्टी में अंतर्विरोधों को खत्म करने, पार्टी संगठन में जान डालने, योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रखने की रणनीति है। देखा जाए तीन दशक से यूपी में सत्ता से बाहर कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती संगठन को लेकर है। रैली को सफल बनाने के लिए कांग्रेस ने जी तोड़ मेहनत की थी और (बीजेपी) को छोड़ अन्य विपक्षी दलों को संदेश देने में सफल रहे की उन्हें कम आंकना भूल साबित हो सकती है। खास बात यह है कि कांग्रेस मुस्लिमपरस्ती से छुटकारा पाना चाहती है। यही वजह है कि राहुल से लेकर प्रियंका तक मंदिरों में पूजा-अर्चना करते फिर रहे हैं। प्रियंका ने रैली में अपने भाषण की शुरूआत दुर्गा स्तुति कर लोगों को रिझाने की कोशिश की। मतलब साफ है यूपी चुनाव से पहले कांग्रेस उदार हिंदुत्व को अपने एजेडे में शामिल करना चाहती है।
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यह अलग बात है कि मुस्लिम कांग्रेस की इस रणनीति को भली-भांति समझ रहा है और यही वजह है कि वह कांग्रेस में उसकी रुचि नहीं बन पा रही है। उसकी दिलचस्पी कम से कम यूपी में सपा-बसपा में ही दिखती है। फिरहाल, यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के भीतर एक बदलाव की छटपटाहट साफतौर पर देखी जा सकती है। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी जब से यूपी में सक्रिय हुई हैं तब से वह सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने की कोशिश कर रही हैं। प्रियंका की इस सियासत पर गौर करें तो वो कभी प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर संगम में डुबकी लगातीं दिख जाती हैं तो कभी शंकराचार्य से आशीर्वाद लेती प्रियंका की तस्वीरें वायरल होती हैं। कुछ ऐसा ही राहुल गांधी भी करने की कोशिश करते देखे जा सकते है। यह अलग बात है कि कांग्रेस को इन धार्मिक यात्राओं का उतना फायदा नहीं मिला इसके गवाह 2019 के चुनाव है।
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ऐसा नहीं है कि प्रियंका आज मंदिर के चक्कर लगाकर कोई नया काम कर हरी हैं। उनकी दादी इंदिरा गांधी भी मंदिरों के चक्कर लगाया करती थीं। वह नियमित तौर पर हिन्दू मंदिरों में जाकर विपक्ष के हिन्दू प्रतीकों की राजनीति को काफी कम कर देती थीं। लेकिन 80 के दश में पूर्व पीएम प्रधानमंत्री राजीव गांधी शाहबानों केस को लेकर जिस तरह से कानून बनाया, उससे संघ को जन जन तक यह बात पहुंचाने में मदद मिली कि कांगेस का एजेंडा मुस्लिम तुष्टीकरण का है।
हालांकि, कांग्रेस नेताओं ने कहा कि इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है और पार्टी सभी धर्मों के सद्भाव में दृढ़ विश्वास रखती है। उन्होंने कहा कि वाराणसी की रैली सभी चार प्रमुख धर्मों – हिंदू धर्म, इस्लाम, सिख धर्म और ईसाई धर्म के उपदेशों के साथ शुरू हुई। जबकि बीजेपी इसे कांग्रेस का नया आडंबर बता रही है। उसका कहना है कि जनता इनकी हकीकत पहले ही जान चुकी है। मंदिरों में जाना और माथे पर तिलक लगाने की नौटंकी ये परिवार तो पहले भी करता रहा है। यदि ये सच्चे मायने में यदि अपने आपको हिन्दुओं की चिंता करने वाले मानते हैं तो इनको कश्मीर में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को भी देखना चाहिए।
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वहां जाकर उनके आंसू पोछने चाहिए लेकिन इनको केवल वोट की राजनीति करनी है और कुछ नहीं। इससे पहले, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद से जब पूछा गया कि पार्टी “भाजपा के हिंदुत्व“ का मुकाबला कैसे करेगी, तो उन्होंने कहा कि, “यह एक हिंदू बहुल राष्ट्र है। उत्तर प्रदेश एक हिंदू बहुल राज्य है। उनकी पार्टी का हिंदू धर्म को लेकर एक अलग सोच है। हमारा हिंदू धर्म अभियान है कि हिंदू धर्म समावेशी है, हिंदू धर्म धर्मनिरपेक्ष है। और, इसलिए हिंदू धर्म इस्लाम सहित अन्य धर्मों के साथ हाथ मिलाना चाहता है। वे कहते हैं कि हिंदू धर्म अकेला है। हम कहते हैं कि हिंदू धर्म अन्य धर्मों के साथ है। मुझे विश्वास है कि राज्य के लोग हमारे पक्ष में फैसला करेंगे। लेकिन कांग्रेस के इस हिंदुत्व एजेंडे से उसकी धर्म निरपेक्षता का क्या होगा ये बड़ा सवाल है। अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि मंदिर हमारी संस्कृति में श्रद्धा, आस्था और भक्ति का केंद्र है। इसे चुनाव प्रचार संबंधी अभियान के लिए उपयोग करना ठीक नहीं है। विधानसभा चुनाव का माहौल बनाने की चाह में प्रियंका मंदिरों का भ्रमण कर रही हैं। मंदिर तीर्थ स्थल हैं, उन्हें प्रचार और पर्यटन का केंद्र बना लिया गया है। प्रियंका गांधी के भाई राहुल मंदिरों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं। ऐसे में उनके वहां दर्शन-पूजन का क्या औचित्य बनता है?