-केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 11,040 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय खाद्य तेल- पॉम तेल मिशन को दी मंजूरी
-केंद्र सरकार खुद वहन करेगी 8,844 करोड़ रुपये
-नई योजना का फोकस पूर्वोत्तर के क्षेत्रों तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर होगा
-तिलहन और पाम ऑयल का रकबा और पैदावार बढ़ाने पर फोकस
– 98 प्रतिशत कच्चा ताड़ का तेल आयात किया जाता है
नई दिल्ली/ नेशनल ब्यूरो : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में ताड़ के तेल (पाम ऑयल) के लिये एक नये मिशन की शुरुआत को मंजूरी दी गई है। इसका नाम राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन (एनएमईओ-ओपी) है। यह केंद्र द्वारा प्रायोजित एक नई योजना है और इसका फोकस पूर्वोत्तर के क्षेत्रों तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर है। खाद्य तेलों की निर्भरता बड़े पैमाने पर आयात पर टिकी है, इसलिये यह जरूरी है कि देश में ही खाद्य तेलों के उत्पादन में तेजी लाई जाये। इसके लिये पाम ऑयल का रकबा और पैदावार बढ़ाना बहुत अहम है। इस योजना के लिये 11,040 करोड़ रुपये का वित्तीय परिव्यय निर्धारित किया गया है, जिसमें से केंद्र सरकार 8,844 करोड़ रुपये का वहन करेगी। इसमें 2,196 करोड़ रुपये राज्यों को वहन करना है। इसमें आय से अधिक खर्च होने की स्थिति में उस घाटे की भरपाई करने की भी व्यवस्था शामिल की गई है। इस योजना के तहत, प्रस्ताव किया गया है कि वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल का रकबा 6.5 लाख हेक्टेयर बढ़ा दिया जाये और इस तरह आखिरकार 10 लाख हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य पूरा कर लिया जाये। इसके बाद कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) की पैदावार 2025-26 तक 11.20 लाख टन और 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुंच जायेगी। इस योजना से पाम ऑयल के किसानों को बहुत लाभ होगा, पूंजी निवेश में बढ़ोतरी होगी, रोजगार पैदा होंगे, आयात पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय भी बढ़ेगी।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि वर्ष 2014-15 में 275 लाख टन तिहलन का उत्पादन हुआ था, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 365.65 लाख टन हो गया है। पाम ऑयल की पैदावार की क्षमता को मद्देनजर रखते हुये वर्ष 2020 में भारतीय तेल ताड़ अनुसंधान संस्थान (आईआईओपीआर) ने पाम ऑयल की खेती के लिये एक विश्लेषण किया था। उसने लगभग 28 लाख हेक्टेयर में पाम ऑयल की खेती के बारे में अपने विचार व्यक्त किये थे। लिहाजा, ताड़ के पौधे लगाने की अपार क्षमता मौजूद है, जिसके आधार पर कच्चे ताड़ के तेल की पैदावार भी बढ़ाई जा सकती है। मौजूदा समय में ताड़ की खेती के तहत केवल 3.70 लाख हेक्टेयर का रकबा ही आता है। अन्य तिलहनों की तुलना में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ताड़ के तेल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक होता है। इसके अलावा एक हेक्टेयर की फसल से लगभग चार टन तेल निकलता है। इस तरह, इसकी खेती में बहुत संभावनाएं हैं।
बता दें कि आज भी लगभग 98 प्रतिशत कच्चा ताड़ का तेल आयात किया जाता है। इसे मद्देनजर रखते हुए योजना शुरू करने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि देश में ताड़ की खेती का रकबा और पैदावार बढ़ाई जाये। प्रस्तावित योजना में मौजूदा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तेल ताड़ कार्यक्रम को शामिल कर दिया जायेगा।
केंद्रीय मंत्री तोमर के मुताबिक इस योजना में दो प्रमुख क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है। पाम ऑयल के किसान ताजे फलों के गुच्छे (एफएफबी) तैयार करते हैं, जिनके बीज से तेल-उद्योग तेल निकालता है। इस समय इन एफएफबी की कीमतें सीपीओ के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में उतार-चढ़ाव के आधार पर तय होती हैं। पहली बार केंद्र सरकार इन एफएफबी की कीमत के लिए किसानों को आश्वासन दे रही है। यह व्यवहार्यता मूल्य (वीपी) कहलाएगा, यानी किसानों को कोई घाटा नहीं होने दिया जाएगा। इसके जरिये सीपीओ की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव से किसानों के हितों की रक्षा की जाएगी। यह व्यवहार्यता मूल्य पिछले पांच वर्षों के दौरान वार्षिक औसत सीपीओ कीमत के आधार पर होगा तथा थोक मूल्य सूचकांक में दिये गये पाम ऑयल के आंकड़े में 14.3 प्रतिशत का इजाफा कर दिया जायेगा। यानी व्यवहार्यता मूल्य इन दोनों को मिलाकर तय होगा। इसे तय करने की शुरुआत एक नवंबर से होगी और अगले वर्ष 31 अक्टूबर तक की अवधि तक जारी रहेगी, जिसे ‘पाम ऑयल वर्षÓ कहा जाता है। इस आश्वसन से भारत के ताड़ की खेती करने वाले किसानों में विश्वास पैदा होगा और वे खेती का रकबा बढ़ायेंगे। इस तरह ताड़ के तेल का उत्पादन भी बढ़ेगा। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक फार्मूला मूल्य (एफपी) भी निर्धारित किया जायेगा, जिसके तहत क्रेता-विक्रेता अग्रिम रूप से कीमतों पर राजी होंगे। यह महीने के आधार पर सीपीओ का 14.3 प्रतिशत होगा। अगर जरूरत पड़ी तो व्यवहार्यता मूल्य व फार्मूला मूल्य के आधार पर आय-व्यय के अंतराल की भरपाई की जायेगी, ताकि किसानों को घाटा न हो। इस धनराशि को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के रूप में सीधे किसानों के खातों में भेज दिया जायेगा।
एक पौधा रोपने पर 250 रुपये मिलेंगे
केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक योजना का दूसरा प्रमुख पहलू यह है कि विभिन्न तरह की भूमिकाओं और गतिविधियों में तेजी लाई जाये। ताड़ की खेती के लिये सहायता में भारी बढ़ोतरी की गई है। पहले प्रति हेक्टेयर 12 हजार रुपये दिये जाते थे, जिसे बढ़ाकर 29 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। इसके अलावा रख-रखाव और फसलों के दौरान भी सहायता में बढ़ोतरी की गई है। पुराने बागों को दोबारा चालू करने के लिये 250 रुपये प्रति पौधा के हिसाब से विशेष सहायता दी जा रही है, यानी एक पौधा रोपने पर 250 रुपये मिलेंगे।
15 हेक्टेयर के लिये 80 लाख रुपये की सहायता मिलेगी
देश में पौधारोपण साजो-सामान की कमी को दूर करने के लिये, बीजों की पैदावार करने वाले बागों को सहायता दी जायेगी। इसके तहत भारत के अन्य स्थानों में 15 हेक्टेयर के लिये 80 लाख रुपये तक की सहायता राशि दी जायेगी, जबकि पूर्वोत्तर तथा अंडमान क्षेत्रों में यह सहायता राशि 15 हेक्टेयर पर एक करोड़ रुपये निर्धारित की गई है। इसके अलावा शेष भारत में बीजों के बाग के लिये 40 लाख रुपये और पूर्वोत्तर तथा अंडमान क्षेत्रों के लिये 50 लाख रुपये तय किये गये हैं। पूर्वोत्तर और अंडमान को विशेष सहायता का भी प्रावधान है, जिसके तहत पहाड़ों पर सीढ़ीदार अर्धचंद्राकार में खेती, बायो-फेंसिंग और जमीन को खेती योग्य बनाने के साथ एकीकृत किसानी के लिये बंदोबस्त किये गये हैं। पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान के लिये उद्योगों को पूंजी सहायता के संदर्भ में पांच मीट्रिक टन प्रति घंटे के हिसाब से पांच करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसमें यह भी देखा जायेगा कि अमुक समय में कितना काम हुआ और उसके हिसाब से क्षमता बढ़ाने का प्रावधान भी शामिल किया गया है। इस कदम से इन क्षेत्रों के प्रति उद्योग आकर्षित होंगे।