-यूपी के सिख किसानों को बचाने के लिए प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
-सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत तुरंत सिख किसानों को राहत दें सरकार
नई दिल्ली / टीम डिजिटल : उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर और लखीमपुर खीरी में सिख किसानों को उनकी जमीनों से वन विभाग द्वारा उजाडऩे से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू करने के लिए सिख संगठन जागो ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। पार्टी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में सिख किसानों को उत्तर प्रदेश सरकार के वन विभाग द्वारा परेशान करने की विस्तार से जानकारी दी है। साथ ही पीलीभीत जिले के सिख किसानों की नानक सागर डैम बनने के कारण छीनी गई जमीन के बदले जमीन दिलाई जाए।
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दिल्ली सिख गुरद्वारा प्रबन्धक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष जीके ने बताया कि उत्तर प्रदेश में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद आकर बसने वाले सिखों द्वारा अपने खून-पसीने से उपजाऊ बनाई गई जमीनों पर वन विभाग द्वारा कब्जा करने की की कोशिशों हो रही है। इस संबंधी कई पीडि़त सिख किसानों की ओर से हमें संपर्क किया गया हैं। पहला मामला जनपद बिजनौर की तहसील नगीना के ग्राम चंपतपुर में 1950-1955 में आकर अपनी जमीन खरीद करके आबाद हुए कुछ सिख परिवारों का हैं, उस समय की सरकारों ने खाली पड़ी बेआबाद जमीन उक्त किसानों को खेती के लिए मौखिक तौर पर उस समय दे दी थी।
जिसको अपनी मेहनत तथा जंगली जानवरों के हमलों को झेलते हुए सिख किसानों ने उपजाऊ तथा आबाद किया और इस समय उक्त किसानों की तीसरी-चौथी पीढ़ी इन जमीनों पर खेती कर रहीं हैं। जिसके लिए बाकायदा उक्त जमीनों पर खेती के लिए नलकूपों पर किसानों ने बिजली कनेक्शन लिए हुए हैं तथा वर्षों से पक्के मकान बनाकर अपने परिवार सहित यह लोग रह रहें हैं।
दूसरा मामला जनपद लखीमपुर खीरी से जुड़ा
जागो के अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके ने बताया कि दूसरा मामला जनपद लखीमपुर खीरी की तहसील निघासन के ग्राम रन नगर में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद आकर बसने वाले 250-300 सिख परिवारों का हैं। तब यह बेआबाद जमीन विक्रम शाह के नाम से थी, जिसको बाकायदा विक्रम शाह से खरीद करके अपनी मेहनत से आबाद करके खेती के लायक सिख किसानों ने बनाया था। खेती के साथ ही किसानों के अपने मकान बनाकर इस जमीन को आबाद किया था।
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उस समय जमीनों की रजिस्ट्री नहीं होती थी, इसलिए जमीन विक्रम शाह के नाम पर ही बनी रहीं। लेकिन जब 1966 में इस संबंधी बंदोबस्त शुरू हुआ तो सरकारी अमले ने उक्त जमीन सीलिंग में घोषित कर दी और अपने रिकॉर्ड में इसे जंगलात के तौर पर दर्ज कर लिया। 1980 में हुई चकबंदी में इन सिख परिवारों को 1960 से काबिज मानते हुए इनके खाते बांध दिए और इसकी खतौनी आज भी इनके पास हैं। इन्हीं खतौनियों की वजह से 1980 में चीनी मिलों में यह शेयर होल्डर भी बनें और नलकूपों पर बिजली के कनेक्शन भी लिए। सरकार ने भी आबाद इलाके की कद्र करते हुए पानी की टंकी, पक्की सड़कें और विकास के कई कार्य करवाए।
तीसरा मामला जनपद पीलीभीत का है
मंजीत सिंह जीके ने बताया कि तीसरा मामला जनपद पीलीभीत का हैँ। सन 1964 में गुरदवारा नानकमत्ता साहब में नानक सागर डैम के निर्माण के लिए सरकार के द्वारा जमीन अधिग्रहण की गई थी। उस समय 168 सिख परिवारों की करीब 3000 एकड़ जमीन भी इस डैम के लिए अधिग्रहित हो गई थी। इसके एवज में जनपद पीलीभीत के टाटर गंज में सिख परिवारों को बसाया गया था। उसी समय भारी बारिश की वजह से वहां पर नदी का पानी चढ़ आया और मौजूद लोगों ने अपने छप्पर वगैरा छोड़कर बंधे पर आसरा कर लिया था। जब पानी उतरा और अपनी जमीन पर वापस आए तो उसी समय जंगलात विभाग ने कहा कि यह जमीन जंगल की है, इसको खाली करो, तब से लेकर आज तक वह गरीब परिवार दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हैं और अपनी जमीनें होते हुए भी लोगों के यहां मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पाल रहे हैं। किसी भी सरकार ने उनकी अधिग्रहण की गई जमीन के बदले मुआवजा या जमीन नहीं दी।
55 साल से रह रहे सिख किसानों को उजाड़ रही है सरकार
मंजीत सिंह जीके ने कहा कि इन तथ्यों से साफ हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार लगभग 55-60 सालों से पक्के तौर पर खेती और निवास कर रहें सिख किसानों को डंडे के जोर पर उजाडऩे के लिए सक्रिय हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने जमीन व जायदाद के प्रतिकूल कब्जे के बारे 2019 में दिए अपने आदेश में साफ कहा हैं कि 12 सालों से अधिक समय से काबिज किसी भी कब्जेदार को मालिकाना हक प्राप्त करने का हक है। 1980 में भी उक्त किसानों को जमीन से बेदखल करने का जब कुचक्र रचा गया था तो भी मेरे पिता व दिल्ली कमेटी के उस समय के अध्यक्ष जत्थेदार संतोख सिंह ने इन किसानों को न्याय दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ी थी और खतौनियां करवा कर दी थी। जीके ने प्रधानमंत्री को उत्तर प्रदेश वन विभाग से सिख किसानों को जमीनों का मालिकाना हक देने का अध्यादेश जारी करवाने की अपील करते हुए नानक सागर डैैम केे विस्थापितों को जमीनों का मालिकाना हक देने की वकालत भी की हैं।