20.1 C
New Delhi
Saturday, December 21, 2024

देश के गुमनाम समाजसेवकों, कलाकारों तक पहुंचा पदम् सम्मान

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री)
देश के सुदूर क्षेत्रों में अनेक लोग समाज सेवा के विलक्षण कार्य करते रहे है। कुछ वर्ष पहले तक सरकारों का ध्यान उनकी तरफ जाता ही नहीं था। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते समय अपनी सरकार को गरीबों के प्रति समर्पित बताया था। अनेक सामाजिक,आर्थिक व लोक कल्याण के विषयों पर इस विचार पर अमल किया जा रहा है। इतना ही नहीं पिछले कुछ वर्षों से पदम् सम्मानों में भी यह परिलक्षित है। राष्ट्रपति भवन में पदम् सम्मान ग्रहण करने वाले वनवासी,ग्रामीण व अन्य निर्धन वर्ग के लोग भी मुख्य धारा में दिखाई देने लगे है। ऐसे सभी चित्र भाव विह्वल करते है। वर्तमान पीढ़ी को प्रेरणा देते है। संकल्प से सिद्धि का उदाहरण प्रस्तुत करते है।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पदम् पुरष्कारों में नया अध्याय जुड़ा है। इसमें गुमनाम समाजसेवकों, कलाकारों को भी शामिल किया गया। इस प्रकार यह प्रतिष्ठित पुरष्कार गांव ही नहीं वनवासी क्षेत्रो तक पहुंच गया है। इस संबद्ध में पिछले कुछ वर्षों की पदम् पुरष्कार सूची देखना दिलचस्प है। अब पदम् सम्मान समारोह में अद्भुत दृश्य दिखाई देते है। अक्सर चित्र भी अपने में बहुत कुछ कह जाते है। जब कोई गरीब महिला राष्ट्रपति के सिर पर आशीर्वाद का हांथ रखती है,जब ऐसे ही किसी अन्य सम्मानित व्यक्ति से प्रधानमंत्री हांथ जोड़ बतियाते है। कुछ वर्ष पहले तक ऐसी कल्पना भी मुश्किल होती थी। अब परम्परा का रूप ले चुकी है।

प्रतिवर्ष पदम् सम्मान वितरण के समय ऐसा ही दृश्य रहता है। नरेंद्र मोदी के चिंतन में यह सब सहज रूप में चलता है। उनसे संबंधित ऐसा ही चित्र प्रयागराज कुंभ में देखने को मिला था। जिसमें प्रधानमंत्री सफाई कर्मियों के पैर धो रहे है। इस भावना का चित्र राष्ट्रपति भवन में दिखाई दिया। जिसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पदम् पुरष्कार प्रदान कर रहे है। उन्होंने सम्मान देते हुए एक समाजसेवी महिला के सामने सिर झुका दिया,इस बुजुर्ग महिला ने उनके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। इस चित्र पर विचार करते है तो एक नया अध्याय उभरता है।
देश के विभिन्न इलाकों में अनेक गुमनाम समाजसेवी है। जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते रहे। बदले में कोई आकांक्षा नहीं की। धन दौलत, पद,यश,वैभव किसी की चाह नहीं थी। मीडिया या प्रचार से दूर रहे, गुमनामी में अपना कार्य करते रहे। अपवाद छोड़ दें तो पहले इनकी ओर शासन का ध्यान भी नहीं जाता था। कोई पहाड़ तोड़ कर अकेले ही सड़क बनाता रहा। वर्षों तक यह क्रम चला। शासन का ध्यान उधर गया होता तो उनका कार्य आसान हो गया होता। लेकिन हार नही मानी। पहाड़ को तोड़ कर मार्ग मनाकर ही दम लिया। इसी प्रकार अनेक लोग अपने अपने ढंग से समाजसेवा में जुटे हुए है। नरेंद्र मोदी ने ऐसे गुमनाम लोगों को पद्म सम्मान देने का निर्णय लिया था। अब प्रतिवर्ष ऐसे लोगों को सम्मान पुरष्कार देने की परंपरा शुरू हुई। कोरोना के चलते नहीं दिए जा सके थे पुरस्‍कार
पद्म पुरस्कारों की घोषणा हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर की जाती है। राष्ट्रपति मार्च अप्रैल में ये पुरस्कार प्रदान करते हैं। लेकिन कोरोना के चलते इस बार ये पुरस्कार नहीं दिए जा सके थे। बिहार के मधुबनी जिले में रहने वाली दुलारी देवी को पद्मश्री सम्मान मिला। बारह वर्ष की उम्र में ही शादी हो गई। सिर्फ सात साल बाद मायके वापस लौट आईं। यहीं से दुलारी का संघर्ष शुरू हुआ। दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा किया करती थीं। बाद झाड़ू की जगह कूची ने ले ली। इसके बाद मधुबनी पेंटिंग बनाने का जो सिलसिला दुलारी ने शुरू किया वो आज तक नहीं रुका। वह अबतक सात हजार मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं। डॉ टी वीराघवन का नाम उत्‍तरी चेन्‍नई में दो रुपये वाले डॉक्‍टर के रूप में प्रतिष्ठित थे। इतनी फीस में ही मरीजों का उपचार करते थे। बाद में उन्‍होंने अपनी फीस 5 रुपये कर दी थी। इससे अधिक कभी नहीं बढाई। उनका यश बहुत था। अन्य डॉक्टर उनके विरोधी हो गए। उन्होंने अपनी फीस सौ रुपये करने का उन पर दबाब बनाया। इसका उल्टा असर हुआ। उन्होंने फीस लेना ही बन्द कर दिया। काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल लगभग नब्बे वर्ष की आयु में भी नई पीढ़ी को संस्कृत की निःशुल्क शिक्षा देते हैं। भूरी बाई
जनजातीय परंपराओं पर अद्भुत चित्रकारी का हुनर दिखाया। मध्‍य प्रदेश की वनवासी भूरी बाई को पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया। छुटनी देवी को समाज सेवा के लिए पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया है। पच्चीस वर्ष पहले उन्‍हें डायन बताकर घर से निकाल दिया गया था। वह विचलित नहीं हुई। बल्कि इस कुप्रथा के विरुद्ध अभियान चलाया। इसमें उन्हें बड़ी हद तक सफलता मिली।
भागलपुर में डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह को समाज और चिकित्सीय सेवा के लिए पद्मश्री से मिला। तिरानबे वर्षीय डॉ दिलीप कुमार सिंह गांव में रह कर गरीबों का निशुल्क या नाममात्र का पैसा लेकर इलाज करते है। पश्चिम बंगाल के नारायण देबनाथ सत्तानबे वर्ष के है। सत्तर साल से बंगाली कॉमिक स्ट्रिप्‍स बनाते आ रहे हैं। कॉमिक में डीलिट करने वाले एकमात्र भारतीय है। दुनिया में सबसे लंबी कॉमिक स्ट्रिप चलाने का रेकॉर्ड उनके नाम है। संगीत के क्षेत्र में राजस्‍थान के लाखा खान को पद्मश्री मिला। वह छह भाषाओं हिन्दी, मारवाड़ी,सिंधी,पंजाबी और मुल्तानी में गाते हैं। वह मांगणियार समुदाय में प्यालेदार सिंधी सांरगी बजाने वाले एकमात्र कलाकार हैं। सिंधी सारंगी के गुरु है। तमिलनाडु के एक सौ पांच वर्षीय एम पप्पम्माल को पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया है। वह भवानी नदी के किनारे अपना ऑर्गनिक फार्म चलाती हैं। अठत्तर साल के सुजीत चटोपाध्‍याय पूर्वी बर्धमान के अपने घर में पाठशाला चलाते हैं। सालभर के लिए सिर्फ एक रुपये की फीस लेते हैं। राजनीति के क्षेत्र में सुषमा स्वराज और मृदुला सिन्हा को मरणोपरांत पदम् सम्मान प्रदान किया गया। दोनों विभूतियों ने समाज सेवा के साथ ही अपनी विद्वता की भी छाप छोड़ी थी। सुषमा स्वराज के भाषण और मृदुला सिन्हा का लेखन लोगों को विशेष रूप में प्रभावित करता रहा। सुषमा स्वराज ने अपनी प्रत्येक जिम्मेदारी व संवैधानिक दायित्वों को कुशलता पूर्वक निर्वाह किया। सुषमा स्वराज का व्यवहार बहुत सहज रहता था। हास्य विनोद के साथ उनकी वाक्पटुता भी बेजोड़ थी। एक बार लखनऊ में दोपहर में उनका आगमन हुआ। शाम को माधव सभागार के एक कार्यक्रम में सम्मिलत होने पहुंची। यहां प्रदेश के एक बड़े नेता ने उनका स्वागत किया। सुषमा जी ने कहा कि उनका नाम लेकर कहा कि दोपहर में जब आप अमौसी एयर पोर्ट पर आए थे,तब दूसरे रंग का कुर्ता पहना था। इस समय रंग बदल गया। आस पास खड़े लोगों ने ठहाका लगाया। सुषमा जी के हास्य में वैचारिक रंग का भी पुट था। समझने वाले समझ गये। साहित्य व राजनीति दोनों में एक साथ अपनी प्रतिभा प्रमाणित करने वाले अनेक लोग हुए। गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा भी इसमें शामिल थी। उन्होंने अपनी जीवनी का शीर्षक राजपथ से लोकपथ नाम दिया। इन दो शब्दों में उनकी द्रष्टि जीवन समाहित है।  राजनीति से अधिक उनकी साहित्य चर्चा में रुचि थी। व्यस्तता व गम्भीर चिंतन के बीच वह विनोद पूर्ण टिप्पणी भी करती थी। लखनऊ में एक कार्यक्रम को संबोधित करके बाहर निकल रही थी। सामने से एक महिला फोटोग्राफर फोटो ले रही थी। उसे किसी बात पर हंसी आ गई। मैं भी देख रहा था कि किसी अन्य से बात करके हंसी थी। वैसे मृदुला जी भी सामने ही देख रही थी। शायद विद्वतापूर्ण व्याख्यान के बाद वह माहौल को कुछ बदलना चाहती थी। वह रुकीं,उस महिला पत्रकार को पास बुलाया। पूंछा क्या तुम हमको देखकर तो नहीं हंस रही थी। वह सकपका गई। उसने कहा अरे नहीं, मृदुला जी बोली,तब ठीक है। यह सुनकर वहां मौजूद लोग हंस पड़े। उन्होंने गोवा के राज्यपाल मनोनीत होने,वहां पहुंचने से लेकर गोवा राजभवन के इतिहास का जो सुंदर चित्रण किया था,वह साहित्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो गया। समुद्र किनारे स्थित राजभवन में प्रवेश करते समय उन्होंने जो मनोभाव व्यक्त किया, वह भी साहित्य की श्रेणी में आते है। उनका जन्म बिहार मुजफ्फरपुर जिले के छपरा गाँव में हुआ था।मनोविज्ञान में एमए करने के बाद शिक्षिका बनी थी। फिर मोतीहारी के एक विद्यालय में प्रिंसिपल बनी। यही से उनकी साहित्य साधना शुरू हुई थी। बाद में वह राजनीति में आई। वह राज्यसभा सदस्य भी रहीं। राजपथ से लोकपथ के अलावा नई देवयानी,ज्यों मेंहदी को रंग घरवास यायावरी आँखों से,देखन में छोटे लगें,सीता पुनि बोलीं, बिहार की लोककथायें ढाई बीघा जमीन,मात्र देह नहीं है औरत, विकास का विश्‍वास आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियां है।
अटैचमेंट क्षेत्र

latest news

Related Articles

epaper

Latest Articles