-भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजे दवा के तत्व, मिली मंजूरी
–पश्चिमी घाटी में पाए जाने वाले सफेद देवदार की पत्तियों से मिले दवा के तत्व
-आईआईआईएम जम्मू के वैज्ञानिकों ने किया खोज
(खुशबू पाण्डेय)
नई दिल्ली /टीम डिजिटल : अग्नाशय के कैंसर से पीडि़त मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसे तत्व का पता लगाया है, जिसमें अग्नाशय के कैंसर से संबंधित शुरुआती अध्ययनों में कैंसर-रोधी गुण देखे गए हैं। कैंसर-रोधी नई रासायनिक इकाई के रूप में पहचाने गए इस तत्व को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) के न्यू ड्रग्स डिविजन से इन्वेस्टिगेशनल न्यू ड्रग के रूप में मंजूरी मिली है। यह मंजूरी मिलने के बाद अग्नाशय के कैंसर से पीडि़त मरीजों पर आईआईआईएम-290 नामक इस तत्व के चिकित्सीय परीक्षण के रास्ते खुल गए हैं। इस प्रस्तावित चिकित्सीय परीक्षण का उद्देश्य अग्नाशय के कैंसर से ग्रस्त रोगियों में इस तत्व के सुरक्षित उपयोग, सहनशीलता और जोखिम का आकलन करना है।
पश्चिमी घाटी में पाए जाने वाले सफेद देवदार (डायसोक्सिलम बिन्टेकारिफेरम) की पत्तियों से इस दवा के तत्व को प्राप्त किया गया है।
आईआईआईएम के निदेशक डॉ राम विश्वकर्मा के मुताबिक कैंसर सेल लाइन पैनल एनसीआई-60 और चिकित्सकीय रूप से मान्य कैंसर में शामिल प्रोटीन काइनेज के खिलाफ कैंसर-रोधी परीक्षण में प्राकृतिक रूप से प्राप्त तत्व रोहिटुकीन को प्रभावी पाया गया है। एनसीआई-60 कैंसर सेल लाइन पैनल संभावितकैंसर-रोधी गतिविधि का पता लगाने के लिए यौगिकों की स्क्रीनिंग के लिए उपयोग की जाने वाली मानव कैंसर सेल (कोशिका) लाइनों का एक समूह है।
यह खोज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिव मेडिसिन (आईआईआईएम), जम्मू के शोधकर्ताओं ने किया है। यह संस्थान वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) का उपक्रम है।
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे के मुताबिक इन शोधकर्ताओं ने अग्नाशय के कैंसर के खिलाफ चिकित्सीय परीक्षणों के लिए विनियामक अनुमोदन प्राप्त करने से पहले करीब एक दशक तक अनुसंधान किया है।
शोधकर्ताओं ने फाइटोकेमिकल परीक्षण किए
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने फाइटोकेमिकल परीक्षण किए हैं। आईआईआईएम के शोधकर्ता संदीप भराटे ने कहा है कि चिकित्सीय परीक्षण के लिए एनिमल मॉडल्स में इस तत्व की कैंसर-रोधी गतिविधि पर्याप्त नहीं थी। इसीलिए, प्राकृतिक रूप से प्राप्त इस तत्व में संशोधन करके कुछ नई रासायनिक इकाइयां प्राप्त की गई हैं। इन रासायनिक इकाइयों का परीक्षण प्रोटीन काइनेज पर किया गया है। यह प्रोटीन मनुष्य के ऊतकों में पाया जाता है और कैंसरग्रस्त ऊतकों में इस प्रोटीन की मात्रा सामान्य से अधिक पायी जाती है। काइनेज को वास्तव में कैंसर के प्रसार के लिए जिम्मेदार माना जाता है। शोधकर्ताओं ने जिस दवा के तत्व को अलग किया है, वह काइनेज को बाधित करने के साथ-साथ उसकी सघनता को कम करने में भी प्रभावी पाया गया है।
अग्नाशय कैंसर से सालाना होती है एक लाख मौते
अग्नाशय का कैंसर दुनिया के सबसे आम कैंसर रूपों में 12वें स्थान पर है, लेकिन यह कैंसर से होने वाली मौतों का चौथा प्रमुख कारण है। भारत में अग्नाशय के कैंसर की दर प्रति एक लाख पुरुषों पर 0.5-2.4 और प्रति एक लाख महिलाओं पर 0.2-1.8 है। वैश्विक रूप से, यह सालाना एक लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है। इस कैंसर को अनुपचारित कैंसर के प्रकार में से एक माना जाता है, क्योंकि इसका निदान बहुत देर से हो पाता है। अग्नाशय के कैंसर के उपचार के लिए दवाओं की कमी भी एक समस्या है।
अग्नाशय कैंसर की वजह से जिंदगी की जंग हार गए मनोहर पर्रिकर
गोवा के मुख्यमंत्री और भारत के पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अग्नाशय कैंसर या पैन्क्रियाटिक कैंसर की वजह से 63 की उम्र में मुत्यु हो गई। उनकी पत्नी का देहांत भी इसी कैंसर के चलते हुए था। पैन्क्रियाटिक कैंसर पेट के निचले हिस्से में स्थित पैंक्रियाज (अग्नाशय) के ऊतकों में होता है। इसमें पैंक्रियाज में कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं और गड़बड़ी पैदा करने लगती हैं जिसके परिणामस्वरुप कैंसर युक्त ट्यूमर हो जाता है।