देश में कानून व्यवस्था और समाज में शांति बनी रहे इसमें पुलिस की अहम जिम्मेदारी होती है पर पुलिस आज खुद अवसाद ग्रस्त हो चुकी है और देश में पुलिस वालों के आत्महत्या करने का सिलसिला रुक ही नहीं रहा है! अभी कुछ दिनों पहले अमेठी जिले में तैनात रहे गोसाईगंज के मलौली गांव की महिला उपनिरीक्षक रश्मि यादव की संदिग्ध हालत में मौत हो गई ।उससे पहले उत्तर प्रदेश के एएसपी राजेश साहनी ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली..। इनके अलावा भी बहुत सारे उच्च अधिकारी से लेकर सिपाही स्तर तक के अनेक पुलिस वाले हैं जिनके आत्महत्या के मामले सामने आते ही जा रहे हैं। मार्च दो हजार अट्ठारह में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 6 वर्षों में 700 केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल ने आत्महत्या कर ली। पुलिस के अवसाद में होने तथा आत्महत्या करने के अनेक कारण हैं ।
पुलिस बल की कमी समय-समय पर पुलिस विभाग में नई भर्तियां नहीं होने से पुलिस पर वर्क लोड बहुत ज्यादा बढ़ जाता है संयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुसार प्रति एक लाख नागरिक पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए लेकिन हमारे देश में 144 है मतलब हर 450 भारतीयों पर एक पुलिसकर्मी की तैनाती होनी चाहिए लेकिन धरातल पर यह आंकड़ा 694 है इस तरह उन पर अतिरिक्त कार्य का भार सदैव बना रहता है जो उनके अवसाद का कारण है।
अतिरिक्त कार्य का भार : विभिन्न श्रम एक्ट और फैक्ट्रीज एक्ट 1998 के अनुसार किसी भी व्यक्ति से पूरे सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं कराया जा सकता !पर एक पुलिस वाले को सप्ताह में 84 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है और वह भी एसी ऑफिस में बैठकर नहीं करनी होती। कभी रोड पर तो ,कभी जुलूस के संग धूप में जलकर, कभी दंगे वाली जगह पर अपनी जान से खेलकर करनी पड़ती है ताकि समाज में कानून व्यवस्था बनी रहे और अराजकता ना फैले यह भी उनके अवसाद का एक बहुत बड़ा कारण है।
अपेक्षित सम्मान का ना मिलना : पुलिस को वह सम्मान नहीं दिया जाता जिसका पुलिस बल अधिकारी है एक पुलिस वाला प्रतिदिन 12 घंटे की ड्यूटी करता है ना रविवार ना कोई छुट्टी किसी भी अन्य सरकारी विभाग में 1 साल में 100 छुट्टियां मिलती है पर पुलिस विभाग में नहीं मिलती है।जबकि ऐसा नहीं है कि उसे इन कार्य दिवसों का कोई अतिरिक्त भुगतान होता है यही वजह है कि 45 के ऊपर का शायद ही कोई पुलिस वाला हो जो पूरी तरह स्वस्थ हो और फिट हो और इतने त्याग के बावजूद उसे वह सम्मान जनता नहीं देती जो मिलना चाहिए यह सब चीजें उसे अत्याधिक तनावग्रस्त कर देती हैं जिसकी वजह से कई बार आत्महत्या कर लेता है।
दबाव में काम करना : अक्सर ऐसा होता है कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें पुलिस वालों को कहीं ना कहीं राजनेताओं और अधिकारियों के दबाव में काम करना पड़ता है और इस दबाव के चलते कभी अपनी ड्यूटी से तो कभी अपने ईमान से समझौता करना पड़ता है कुछ पुलिस वाले इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते या तो नौकरी छोड़ देते हैं या फिर अपनी जान दे देते हैं।
पोस्ट ट्रामा स्ट्रेस : पुलिसकर्मी भी इंसान होता है उसको बहुत से ऐसे कार्य करने होते हैं जैसे किसी अपराधी को गोली मारना ,भीड़ नियंत्रण के लिए फायरिंग करना और जनता पर बल प्रयोग ऐसे में उसको पोस्ट ट्रामा स्ट्रेस हो जाता है वह घर पर कम समय देते हैं परिजनों से बात नहीं हो पाती है तो वह अपना स्ट्रेस रिलीज नहीं कर पाते हैं जो उनके अवसाद और खुदकुशी का कारण बनता है।
वर्किंग कंडीशन : पहले पुलिस को सिर्फ चार तरफ से दबाव रहता था राजनेता ,मानवाधिकार कार्यकर्ता, आरटीआई ,अदालत और जनता, पर अब एक नया सोशल मीडिया भी आ गया है उनकी एक भूल उनके सारी जिंदगी के मेहनत पर पानी फेर देती है और कई बार किसी पुलिस वाले का वीडियो वायरल होने पर भी वह अपनी मान प्रतिष्ठा के गंवाने के डर से खुदकुशी कर लेते हैं।
यदि पुलिस विभाग में आत्महत्या के मामलों और पुलिस कर्मियों को अवसाद ग्रस्त होने से रोकना है तो पुलिस विभाग को चाहिए कि वह अपने सिपाही से लेकर उच्च अधिकारी तक में तालमेल बिठाए और उनकी समस्याओं का निस्तारण किया जाए उन्हें समय-समय पर मोटिवेशनल कार्यक्रमों में शामिल कर उन्हें मोटिवेट किया जाए और भी बहुत सारे सुधार हैं जिनको सरकार के द्वारा कर कर उनका स्ट्रेस कम किया जा सकता है यदि पुलिस विभाग स्वस्थ और तनाव रहित रहेगी तो अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से अंजाम देगी तथा जनता के साथ सामंजस्य कर कानून व्यवस्था को बेहतर तरीके से बनाए रखेगी।
रेखा शाह आरबी
बलिया (यूपी)