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Sunday, December 22, 2024

India को तोड़ने वालों का नहीं, स्वतंत्रता सेनानियों का History पढ़ाया जाए

नई दिल्ली/ खुशबू पाण्डेय। उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष (speaker of the assembly) सतीश महाना (Satish Mahana) ने कहा कि दूसरों की पीड़ा को अपनी समझने वाले लोग ही सही मायनों में स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके बलिदानों के कारण ही आज हम लोग इन पदों पर बने हुए हैं। सतीश महाना दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘उत्तर प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानियों’ (freedom fighters’) पर आधारित पुस्तक के विमोचन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर सतीश महाना और दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के कुलपति योगेश सिंह (Yogesh Singh) द्वारा संयुक्त रूप से उत्तर प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी पुस्तक के दो भागों का विमोचन किया गया। गुरु जम्भेश्वर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के पूर्व कुलपति प्रो. के.एल. जोहर द्वारा लिखित उक्त पुस्तक का विमोचन समारोह मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के कन्वेंशन हॉल में आयोजित हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि इन पुस्तकों का उद्देश्य राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आदर का भाव पैदा करना है। उन्होने कहा कि भारत को तोड़ने वालों का नहीं बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए।

दूसरों की पीड़ा को अपनी समझने वाले लोग थे स्वतंत्रता सेनानी: महाना
—स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए: कुलपति
—प्रो. के.एल. जोहर की पुस्तक “उत्तर प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी” का विमोचन

मुख्यातिथि सतीश महाना ने अपने संबोधन में कहा कि आजादी की लड़ाई केवल कुछ ही लोगों नें नहीं लड़ी, बल्कि इसमें सबका अपना-अपना योगदान था। आजादी बिना खड्ग बिना ढाल के नहीं मिली। उन्होने स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों का जिक्र करते हुए कहा कि जिन्होंने अपनी जान दी, उनका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचने के लिए हिंसा करना नहीं था। सतीश महना ने भगत सिंह द्वारा असेंबली में बम फेंकने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वह धमाका केवल आवाज पैदा करने के लिए था, न कि किसी को नुकसान पहुँचने के लिए। महारानी लक्ष्मी बाई, अजीजन बाई, झलकारी देवी और नीरा आर्य जैसी महिलाओं का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि देश की आजादी में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है।

सतीश महाना ने सावरकर को लेकर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे लोग जो गुमनामी के अंधेरे में खो गए और अपनी पहचान को छुपाकर काम किया, उनके विचारों और उनकी इच्छा को समझने की जरूरत है। उन्होने कहा कि शहीदों को बाउंड्री के अंदर नहीं बांधा जा सकता; ये सभी एक तार से जुड़े होते हैं। उन्होने कहा कि टीवी पर ऐसे लोगों को अधिक दिखाया जाता है जो समाज पर ज्यादा कुठाराघात करते हैं, जबकि शहीदों को थोड़ी देर ही दिखाया जाता है। इसीलिए ऐसी पुस्तकों का लिखा जाना जरूरी है। सतीश महाना ने पुस्तक के लेखक प्रो. के.एल. जोहर को इन पुस्तकों के लेखन के लिए बधाई देते हुए कहा कि अपने 87 वर्षीय जीवन में जोहर साहब ने अनेकों पुस्तकें लिखी हैं जिनमें से 20 पुस्तकें स्वतंत्रता संग्राम को लेकर लिखी गई हैं।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि 200-250 दिनों में 207 स्वतंत्रता सेनानियों पर 2 भागों में इतनी बड़ी किताब लिखना बहुत बड़ी बात है। कुलपति ने इसके लिए प्रो. के.एल. जोहर को बधाई देते हुए कहा कि 87 वर्ष की उम्र में यह लेखन उनकी मेहनत, लगन, सोच और कृतज्ञता भाव की देन है। प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि व्यक्ति का जीवन बहुत छोटा होता है जबकि किताबों का जीवन बहुत लंबा होता है। उन्होंने कहा कि किताबों के माध्यम से किस तरह अच्छे मनों का निर्माण किया जा सकता है, ये पुस्तकें उसकी मिसाल हैं।

प्रो. योगेश सिंह ने लंदन में इंडिया हाउस की स्थापना करने वाले श्यामजी कृष्ण वर्मा का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया था। 22 अगस्त 2003 को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी की अस्थियों को भारत मंगाया था। कुलपति ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि एक ओर लोग विदेश में रखी श्यामजी वर्मा की अस्थियों को भूल जाते हैं, ओर सिलेबस में मोहमद इकबाल का पाठ पढ़ाया जाता है! पाक की नींव रखने वाले और भारत को तोड़ने वाले को यहाँ क्यों पढ़ाया जाए? उन्होने कहा कि इन किताबों के माध्यम से ऐसे भाव पैदा करना जरूरी है।

प्रो. सिंह ने वीर दामोदर सावरकर पर चर्चा करते हुए कहा कि जिस व्यक्ति को दो जन्मों की सजा हुई, जिसने जीवन भर देश के लिए काम किया उससे परहेज क्यों? उन्होने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के सिलेबस में सावरकर को पढ़ाने का फैसला लिया गया है। कुलपति ने कहा कि यह 21वीं सदी का भारत है, इसमें युवा पीढ़ी को ऐसे तैयार करना है जोकि 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बना सके। इसमें प्राध्यापकों की भूमिका अहम होगी। प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि ये देश रहेगा तो हम रहेंगे; इस भाव का निर्माण करने में भी प्राध्यापकों और विश्वविद्यालयों की बड़ी भूमिका है। यह पुस्तकें इसमें बहुत काम आएंगी।

इस अवसर पर चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय, भिवानी के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल और शहीद भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। समारोह के दौरान मंच संचालन शहीद भगत सिंह के भानजे प्रो. जगमोहन सिंह द्वारा किया गया। अंत में प्रो. जोहर के बेटे विक्रम जोहर ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समारोह के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. प्रकाश सिंह और कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता सहित बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अनु सिंह लाठर, जेसी बोस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके तोमर, हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर, सीसीएस एचएयू के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज और प्रो. प्रदीप दुबे आदि सहित कई विश्वविद्यालयों के कुलपति, डीयू के डीन, प्रिंसिपल, निदेशक, शिक्षक, विधायक और अधिकारी उपस्थित रहे।

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