नई दिल्ली/ सुनील पाण्डेय । हरियाणा मानवाधिकार आयोग (Haryana Human Rights Commission) ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पूरे राज्य में ग्रीन श्मशानों के विस्तार को समर्थन दिया है। यह पहल, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सुनील के. गुलाटी (IAS officer Sunil K. Gulati) द्वारा प्रस्तुत की गई, जिसका उद्देश्य पारंपरिक लकड़ी आधारित दाह संस्कार को गौकाष्ठ (गौबर के डंडे) के उपयोग से बदलना है, जिससेपर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके।
सिरसा जिले के विभिन्न गांवों में पहले ही ग्रीन श्मशानों को सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है, जिसका श्रेय पर्यावरणविद् डॉ. राम जी जैमल (गांव दरबी, सिरसा) को जाता है। वन अनुसंधान संस्थान , देहरादून द्वारा किए गए अध्ययन से पुष्टि हुई है कि इस विधि में केवल 60 किलोग्राम गौकाष्ठ की आवश्यकता होती है, जबकि पारंपरिक दाह संस्कार में 500-600 किलोग्राम लकड़ी लगती है। इसके अलावा, यह विधि कम लागत वाली, धुआं रहित और प्रतिकूल मौसम में भी प्रभावी है।
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—पर्यावरण संरक्षण को हरियाणा मानवाधिकार आयोग का समर्थन
गुलाटी ने हरियाणा सरकार से वित्तीय और प्रबंधकीय सहायता की आवश्यकता पर जोर दिया, क्योंकि वर्तमान में ग्रीन श्मशानों का रखरखाव केवल ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है। इस मुद्दे को हल करने के लिए, एचएचआरसी ने राज्य सरकार को प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण से धन आवंटित करने की सिफारिश की है। हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने उल्लेख किया कि प्राधिकरण में बड़ी राशि अप्रयुक्त पड़ी है, जिसे हरियाणा में ग्रीन श्मशानों के कार्यान्वयन के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।
यह पहल न केवल मानव दाह संस्कार के लिए बल्कि पशुओं, पालतू जानवरों और गौवंश के लिए भी उपयुक्त होगी। चूंकि कोई अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता नहीं है, ग्रीन श्मशान मौजूदा श्मशान स्थलों पर ही स्थापित किए जा सकते हैं। इस परियोजना के लिए विकास एवं पंचायत विभाग ने पहले ही एक परियोजना अनुमान तैयार कर लिया है, जिसे संबंधित अधिकारियों के पास समीक्षा के लिए भेज दिया गया है।
एचएचआरसी ने विभिन्न सरकारी निकायों जैसे शहरी स्थानीय निकाय, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और गौ सेवा आयोग को निर्देश दिया है कि वे इस परियोजना के सफल क्रियान्वयन के लिए समन्वय स्थापित करें। साथ ही, सरकार एक जागरूकता अभियान भी शुरू करेगी, ताकि लोग ग्रीन श्मशानों को अपनाने के लिए प्रेरित हो सकें।
हरियाणा मानवाधिकार आयोग के प्रोटोकॉल, सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी डॉ. पुनीत अरोड़ा ने बताया कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अगली सुनवाई 21 मई 2025 को होगी, जिसमें संबंधित विभागों को अपनी प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। अगर यह पहल सफल होती है, तो यह अन्य भारतीय राज्यों के लिए एक मॉडल बन सकती है, जिससे पूरे देश में पर्यावरण अनुकूल श्मशान प्रणाली को बढ़ावा मिलेगा।
आयोग का निष्कर्ष
संपूर्ण आयोग—अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा, सदस्य कुलदीप जैन और दीप भाटिया—ने अपने आदेश में इस पहल के लिए सीएएमपीए निधि के उपयोग की कानूनी वैधता को दर्ज किया। सीएएमपीए नियम 5(2)(l) के अनुसार, यह निधि वन संरक्षण और संसाधन बचत उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग की जा सकती है। इस योजना का समर्थन हरियाणा के अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव विभाग) आनंद मोहन शरण, आईएएस ने किया, जिन्होंने इसके क्रियान्वयन पर कोई आपत्ति नहीं जताई।