नई दिल्ली। पूरी दुनिया में 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है और भारत में हीमोफिलिया को लेकर जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से हीमोफिलिया फेडरेशन इंडिया (HFI) ने हाल ही में ‘नेशनल हीमोफिलिया मैनेजमेंट समिट’ का आयोजन किया। कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए रोश के सहयोग से हीमोफिलिया के मरीजों, डॉक्टर्स और नीति निर्माताओं के लिए यह सम्मेलन वर्चुअली आयोजित किया गया।
इस समिट ने लोक स्वास्थ्य और देश के हीमोफिलिया समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच अहम जानकारियों का आदान-प्रदान के लिए एक बड़ा अवसर पेश किया और इस सम्मेलन को इसे यूट्यूब और फेसबुक पर स्ट्रीम भी किया गया। इस साल लोगों को जो संदेश इसके जरिए दिया गया है, वह था- “परिवर्तन के लिए अनुकूलन- अयोग्यता से योग्यता तक’।
वैश्विक समुदाय के साथ इस दिन को मनाते हुए सम्मेलन को माननीय अपराजिता सारंगी, संसद सदस्य, भुवनेश्वर संसदीय क्षेत्र, भारत सरकार ने संबोधित किया। इस अवसर पर इन गणमान्य अतिथियों ने भी संबोधित किया-
डॉ. संजय कांत प्रसाद (उप-मुख्य आयुक्त, विकलांगता, सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय, भारत सरकार),
विनीता श्रीवास्तव (राष्ट्रीय सीनियर कंसल्टेंट और कोऑर्डिनेटर, ब्लड सेल- एनएचएम, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय), डॉ. तुलिका सेठ (प्रोफेसर, एम्स-नई दिल्ली) दीपा मलिक (पैरालम्पियन और अर्जुन अवार्डी), और अरमान अली (कार्यकारी निदेशक, एनसीपीईडीपी)
सम्मेलन की शुरुआत एचएफआई के अध्यक्ष मुकेश गरोडिया के संक्षिप्त संबोधन के साथ हुई। उन्होंने कहा, “भले ही हीमोफिलिया को आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में विकलांगता के तौर पर इंगित किया गया है, इसे एक मानक विकलांगता की श्रेणी में नहीं रखा गया है। इसकी वजह से कई समस्याएं पैदा हो गई हैं, जैसे रोजगार में आरक्षण प्राप्त करने में असमर्थता। इसकी वजह से इससे जूझ रहे मरीजों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक अन्य मोर्चे पर हीमोफिलिया के खिलाफ लड़ाई में हीमोफिलिया को डायग्नोज करना बेहद मुश्किल है और 80% से अधिक आबादी बिना डायग्नोज के ही रह जाती है। भारत में संभावित 1.3 लाख हीमोफिलिया मरीजों में से केवल 25 हजार ही हीमोफीलिएक्स के तौर पर प्रमाणित है। इन दो महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने के लिए एचएफआई समय-समय पर विभिन्न प्लेटफार्मों पर इस आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित करती है।”
वर्तमान में, प्रभावी और उच्च गुणवत्ता वाली एएचएफ को विदेशी दवा कंपनियों से महंगी लागत और मुश्किल प्रक्रिया से गुजरकर खरीदना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में एएचएफ की उपलब्धता सीमित है, कई संस्थानों में तो एएचएफ की एक साल की आपूर्ति का इस्तेमाल एक महीने में ही हो जाता है। एचएफआई, वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया से डोनेशन के जरिए कुछ हद तक कमी को पूरा कर रही है और देशभर के सरकारी अस्पतालों में स्थापित 78 हीमोफिलिया उपचार केंद्रों में स्वतंत्र रूप से वितरित करती है। हालांकि, एचएफआई-डब्ल्यूएफएच एसोसिएशन की यह सहायता पूरी तरह से समस्या का समाधान नहीं करती, जिससे एचएफआई के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह उपचार सुविधाओं में सुधार के लिए रोगी समुदाय के साथ खड़ा रहे और देश में स्थानीय स्तर पर इन दवाओं के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहें।
इस सम्मेलन का आयोजन भारत की प्रमुख दवा कंपनियों में से एक रोश इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग किया गया। इस अवसर पर रोश फार्मा के प्रबंध निदेशक सिम्पसन वी इमैनुएल ने कहा, “हीमोफिलिया के बारे में जागरुकता फैलाते हुए इससे पीड़ित लोगों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। अगर शुरुआत में ही डायग्नोज हो जाता है तो काफी हद तक मरीज की सेहत में सुधार भी हो सकता है। हीमोफिलिया को लेकर लोगों की जागरुकता और डायग्नोज करने के लिए संसाधन की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि बड़ी संख्या में लोग अभी भी डायग्नोज नहीं हुए हैं। अगर इस रोग का पता जल्दी लगा लिया जाए तो इससे कम नुकसान होता है। मैनेजमेंट की बात करें तो हीमोफीलिया पेशेंट्स में ब्लीडिंग रोकने और रोकने के लिए प्रोफिलैक्सिस स्टैंडर्ड केयर बना हुआ है। ग्लोबली, प्रोफिलैक्सिस ब्लीडिंग, लॉन्ग टर्म कॉम्प्लिकेशंस, और डिसेबिलिटी को कम करने में अत्यधिक प्रभावी साबित हुआ है। यह आर्थोपेडिक सर्जरी की आवश्यकता को भी कम करता है। इस प्रकार हीमोफीलिया पेशेंट्स की लाइफ क्वालिटी में काफी सुधार हुआ है।’