नई दिल्ली /अदिति सिंह। केंद्र की मोदी सरकार लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने जा रही है, लेकिन हाल में आए राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वेक्षण (NHFS)-5 के परिणाम बताते हैं कि अभी भी देश में 23.3 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत 27 फीसदी है। यानी चार में से एक लड़की का विवाह 18 साल से कम उम्र में होता है। ऐसे में विशेषज्ञों की तरफ से नए कानून के औचित्य पर भी सवाल उठाए गए हैं।
NHFS-5 के आंकड़े 2019-21 के बीच एकत्र किए गए थे। इसके अनुसार 20-24 साल की 23.3 फीसदी विवाहित महिलाओं ने सर्वे के दौरान बताया कि उनका विवाह 18 साल से पहले हुआ। शहरों में यह प्रतिशत 14.7 तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 27 फीसदी था। एनएचएफएस-4 के सर्वे के अनुसार तब देश में 26.8 फीसदी लड़कियों के विवाह 18 साल से पहले हो रहे थे जो 2015-16 के दौरान हुआ था। इस प्रकार लड़कियों के कानूनी आयु से पहले विवाह के मामले करीब चार फीसदी कम हुए हैं, लेकिन अभी भी यह प्रतिशत बेहद ज्यादा है।
ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर NHFS-5 के आंकड़े ज्यादा चिंता प्रकट करते हैं। कई राज्यों में स्थिति चिंताजनक है। पश्चिम बंगाल में 48.1, बिहार में 43.4, झारखंड में 36.1 फीसदी लड़कियां 18 साल से पहले ब्याही जा रही है। ऐसे कई राज्य हैं जहां ग्रामीण अंचल में लड़कियों की कम उम्र में शादी का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत 27 फीसदी से ज्यादा है।
— पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे खराब, आंकडा 48.1 फीसदी
—बिहार में 43.4, झारखंड में 36.1 फीसदी लड़कियां 18 साल से पहले शादी
—ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर NHFS-5 के आंकड़े ज्यादा चिंताजनक
पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PFI) की कार्यकारी निदेशक डॉ. पूनम मुतरेजा ने कहा कि कोई भी कानून बनाने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन आज असल चुनौती यह है कि लड़कियों को शिक्षित करना होगा, आर्थिक रूप से सक्षम बनाना होगा तथा समाज में लड़कियों के प्रति सुरक्षा का वातावरण पैदा करना होगा तभी कम उम्र में लड़कियों का विवाह रुकेगा। असल जरूरत इन समस्याओं का समाधान तलाश करने की है। मुतरेजा के मुताबिक सिर्फ कानून बना देना समस्या का हल नहीं होगा, इससे रोक नहीं लगेगी बल्कि लोग शादियों को छुपाने लगेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के अनुरूप केंद्र सरकार ने महिलाओं के लिए शादी की वैध न्यूनतम उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया है। दूल्हा-दुल्हन की न्यूनतम उम्र में समानता लाने के लिए तैयार प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। देश में इसके पहले भी दुल्हन की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 12, 14,15 और फिर 18 साल किया गया था, लेकिन हर बार यह दूल्हे की न्यूनतम उम्र से कम रही।
उम्र बढ़ाने की क्या है वजह?
लैंगिक निष्पक्षता के लिहाज से उम्र बढ़ाने को जरूरी समझा गया। इसके अलावा जल्द शादी होने से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आजीविका के स्तर पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए उम्र बढ़ने से महिला सशक्तिकरण में मदद मिलेगी। कम उम्र में शादी पर जल्दी गर्भधारण का माताओं और उनके बच्चों के पोषण स्तर और स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। इससे शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर कम करने में मुश्किल होती है।
क्या है जया जेटली समिति की सिफारिश
सरकार ने यह निर्णय समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली की अध्यक्षता वाले कार्यबल की सिफारिश पर लिया है। वर्ष 2020 में इस कार्यबल का गठन किया गया था, जिसमें नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉक्टर वीके पॉल, उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, विधायी कार्य विभागों के सचिव, नजमा अख्तर, वसुधा कामत और दीप्ति शाह जैसे शिक्षाविद शामिल थीं। समिति ने देशभर के 16 विश्वविद्यालयों के युवाओं से मिले फीडबैक के आधार पर शादी की उम्र को बढ़ाकर 21 साल करने की सिफारिश की। इन युवाओं में सभी धर्म के थे।