नयी दिल्ली/, खुशबू पांडेय । देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार तथा वेतन के मामले में महिलाएं पक्षपात का सामना करती हैं। यह बात ऑक्सफेम इंडिया की एक नयी रिपोर्ट में सामने आई है। ऑक्सफेम की इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022 के निष्कर्ष इशारा करते हैं कि देश में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) कम रहने के पीछे भेदभाव एक मुख्य कारक हो सकता है। केंद्रीय सांख्यिकीय और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अनुसार 2020-21 में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में भारत में महिलाओं के लिए एलएफपीआर केवल 25.1 प्रतिशत थी। विश्व बैंक के ताजा आकलन के अनुसार यह दर ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका की तुलना में काफी कम है। रिपोर्ट के अनुसार 2021 में दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं के लिए एलएफपीआर 46 प्रतिशत थी।
ग्रामीण और शहरी भारत में रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं से भेदभाव
—श्रम शक्ति में महिलाओं की संख्या कम हो रही, पुरुषों तथा महिलाओं के बीच बड़ा अंतर
भारत में महिलाओं के लिए एलएफपीआर 2004-05 में 42.7 प्रतिशत थी जो तेजी से घटकर 2021 में महज 25.1 प्रतिशत रह गयी। यह दिखाता है कि इस अवधि में तेज आॢथक विकास होने के बावजूद श्रम शक्ति में महिलाओं की संख्या कम हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार, शहरी इलाकों में नियमित और स्व-रोजगार के मामले में पुरुषों तथा महिलाओं के बीच आय का बड़ा अंतर नजर आया। इसमें कहा गया है, पुरुषों की औसत आय महिलाओं की आय से करीब ढाई गुना अधिक है। रिपोर्ट के लेखकों में शामिल प्रोफेसर अमिताभ कुंडू ने कहा, देशभर में वंचित वर्गों के सामने पक्षपात की समस्या को समझने के ज्यादा प्रयास नहीं हुए। हमने विभिन्न सामाजिक समूहों में रोजगार, वेतन, स्वास्थ्य और कृषि ऋण मिलने संबंधी अलग-अलग परिणामों को समझने के लिए सांख्यिकीय पद्धति ‘डिकंपोजिशन का उपयोग किया है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के निष्कर्ष विशिष्ट तरह के हैं और इनसे केंद्र एवं राज्य सरकारों के नीति निर्माताओं को ऐसे कार्यक्रम तैयार करने में मदद मिल सकती है जिनसे श्रम, पूंजी और अनुदान बाजारों में भेदभाव से निपटा जा सकेगा तथा समावेश की भावना लाई जा सकेगी। ऑक्सफेम इंडिया ने देशभर में सभी महिलाओं के लिए समान वेतन और कार्य के अधिकार के क्रियान्वयन के लिहाज से प्रभावी उपायों को सक्रियता से लागू करने की सिफारिश की।