-पर्यावरण दिवस पर अपनी विपरीत परिस्थितियों से खुद में बदलाव लाओ
(भावना अरोड़ा)
शहरीकरण, लोलुपता, अंधाधुंध भागती सोच के परिणाम स्वरूप आज मनुष्य जाति कहाँ आ खड़ी है ये तो हमारे सामने ही है । हमने कभी न सोचा था कि ईश्वर ने हमारे लिए ये दंड सोच रखा था हमारी गलतियों की अति का । कहर बरसाया है महामारी ने, साँसों की डोर टूटीं असंख्य । वीभत्स दृश्य आँखों में, हृदय में ऐसे समाया कि अब भी नहीं निकल पा रहा इससे इंसान। दुआएँ मांग रहा है दिन-रात अपनी जान बचाने के लिए । तब क्या हुआ था जब ऊँची इमारतें, टावर, काला धुआँ छोड़ती फेक्ट्रियाँ, नदियों-नालों में प्लास्टिक का जमाव करने में खो गया था !! तरक्की में मानवता का पाठ ही भुला दिया था । बस दौड़ता ही चला गया आगे निकलने की रेस में !! न रुका न थका, हर कोई बड़ी मछली बनने की होड़ में और छोटी मछली को साम-दाम,दंड-भेद निगल अपनी पीठ थपथपाने में तल्लीन ।
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प्रकृति का सुंदर स्वरूप छिन्न-भिन्न कर दिया विकास और व्यवस्था के साथ जो खो रहा है, उसमें तालमेल न बैठा सका । सिमट गए सब एक संकुचित दुनिया में, खुली हवा में सुकून से सांस लेने का मज़ा खुद भी भूल गए और अपनी आगे वाली पीढ़ी को भी न सिखा सके । अब जब ऐसा खौफनाक मंज़र आया तो याद आ गए प्रभु भी और याद आ गए सब किए हुए कारनामें घर बैठ । देख लिया अब तो कि तुम्हारे भागते पैरों की लगाम कोई और खींच सकता है । उठाकर कैसा पटका ज़मीन पर कि कोई हाथ भी न बढ़ाएगा उठाने को, कोई पास भी न आएगा अपना दफनाने, जलाने को !! सोचा था कभी कि अंतिम दर्शन में अपने प्यारों को भी न देख सकोगे , नहीं न । अपने कर्मों को सोच पाए बस अकेले,रो पाए तो अकेले, कह पाए बस उससे जिसे भूल ही गए थे ।
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मानवता खतरे में पड़ी हमारी ही गलतियों से, दुआओं में नित हाथ उठ रहे हैं अब एक बार तो सभी के मन में रोज़ ईश्वर का नाम सिमर आता है अब और अपनी गलतियाँ भी । महामारी सर पर तांडव कर रही फिर भी अमानवीय व्यवहार की पराकाष्ठा तो देखो कालाबाजारी करने पर अभी भी कई लोग आमादा रहे । इंसान- इंसान को ही खाने लगा अपने स्वार्थ में धंस गया । देख लो प्रकृति की आपदाओं को क्रोध बरसा रही है । चक्रवात, तूफान, बवंडर से कितना नुकसान मानवजाति को हुआ और होगा, संभल जाओ, इंसानियत अपना लो बस यही काफी है ! यदि अब भी अपने मैले मन साफ न किए, प्रकृति और उसकी बनाई हर एक चीज़ के प्रति प्रेम भाव न मन में जगाया तो दृश्य तो आपके सामने ही है । प्रकृति की रक्षा उसके हर एक प्राणी के प्रति सद्भाव से है ।
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चाहे वे पेड़-पौधे हों, पशु-पक्षी हों, या फिर कोई लाचार मनुष्य। इस पर्यावरण दिवस पर अपनी विपरीत परिस्थितियों से खुद में बदलाव लाओ सादगी की तरफ कदम बढ़ाओ, सेवा की तरफ कदम बढ़ाओ अपने बच्चों की प्रकृति में बदलाव लाओ, ताकि वो अपने आसपास की प्रकृति में बिखरी हर चीज़ को संवार सकें अपने बुद्धि और कौशल से । प्रकृति को बचाने का उसके क्रोध को शांत करने का इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं हो सकता ।