नयी दिल्ली /अदिति सिंह। नियमित रूप से योगाभ्यास करने से गठिया – रुमेटोइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthriti) से पीड़ित व्यक्तियों को राहत देने की क्षमता है और जोड़ों की सूजन, नुकसान और दर्द में आराम मिलता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स (All India Institute of Medical Sciences AIIMS) नयी दिल्ली के हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि योग में गठिया से पीड़ित व्यक्तियों को राहत पहुँचने की क्षमता है। दीर्घकालिक ऑटोइम्यून स्थिति जो जोड़ों की सूजन, नुकसान और दर्द का कारण बन सकती है और साथ ही फेफड़ों, दिल और मस्तिष्क जैसे अन्य अंग प्रणालियों को प्रभावित कर सकती है। नियमित योगाभ्यास से राहत प्राप्त करने में योग की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
—योग से जोड़ों की सूजन, नुकसान और दर्द में आराम मिलता है
—योग में गठिया से पीड़ित व्यक्तियों को राहत पहुँचने की क्षमता है
—नियमित योगाभ्यास से राहत प्राप्त करने में योग की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है
—आणविक प्रजनन और आनुवंशिकी प्रयोगशाला, एनाटॉमी विभाग और रूमेटोलॉजी विभाग एम्स, ने गठिया रोगियों पर योग के सेलुलर और आणविक प्रभावों का अध्ययन किया
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) ने भी अध्ययन की पुष्टि करते हुए कहा है कि योग में गठिया से पीड़ित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने की क्षमता होती है।
आणविक प्रजनन और आनुवंशिकी प्रयोगशाला, एनाटॉमी विभाग और रूमेटोलॉजी विभाग एम्स, ने गठिया रोगियों पर योग के सेलुलर और आणविक प्रभावों का अध्ययन किया। इस अध्ययन में पाया गया है कि योग सेलुलर डैमेज और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (ओएस) को नियंत्रित करके सूजन को कम करता है और प्रो-और एंटी-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स के बीच संतुलन बनाए रखता है। इसके अलावा एंडोफिर्न के स्तर को बढ़ाता है तथा कोटिर्सोल और सीआरपी के स्तर को कम करता है।
मेलाटोनिन लय को नियंत्रित करने के साथ अंतत: सूजन को कम करता है। अध्ययन से पता चला है कि आणविक स्तर पर, योग डीएनए की मरम्मत और कोशिका विनियमन में शामिल टेलोमेरेज़ एंजाइम और जीन की गतिविधि को बढ़ाकर कोशिकाओं की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है, जबकि माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन में भी सुधार होता है। यह ऊर्जा उपापचय को बढ़ाकर और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करके टेलोमियर एट्रिशन और डीएनए क्षति से बचाता है। आणविक प्रजनन और आनुवंशिकी प्रयोगशाला में डॉ. रीमा दादा और उनकी टीम, एनाटॉमी विभाग, एम्स ने डीएसटी के सहयोग से किए गए अध्ययन में पाया गया कि नियमित योगाभ्यास करने वाले रोगियों ने दर्द को कम पाया और रोगियों की बेहतर जॉइंट मोबिलिटी, दिव्यांगता में कमी और जीवन की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि हुई है।
योग का अभ्यास करने से तनाव से मुक्ति मिलती है
अध्ययन के अनुसार योग का अभ्यास करने से तनाव को प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है। कोटिर्सोल जैसे तनाव हार्मोन को कम करने से योग अप्रत्यक्ष रूप से सूजन को कम होती है। माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन में सुधार करने के साथ ही बीटा-एंडोफिर्न मस्तिष्क-व्युत्पन्न न्यूरोट्रॉफिक कारक (बीडीएनएफ), डीहाइड्रोएपिएंड्रोस्टेरोन (डीएचईए), मेलाटोनिन, और सिटर्ुइन-1 (एसआईआरटी-1) के स्तर को बढ़ाकर कोमोर्बिड अवसाद की गंभीरता को कम करता है।
मस्तिष्क की फ्लेक्सीबिलिटी में भी सहयोग करता योग
शोध में खुलासा हुआ है कि योग मस्तिष्क की फ्लेक्सीबिलिटी में भी सहयोग करता है। यह शोध गठिया रोगियों के लिए एक पूरक उपचार के रूप में योग की क्षमता को स्वीकार करता है। दर्द और अकड़न जैसे लक्षणों को कम करने के अलावा जीवन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ा सकता है। दवाओं के विपरीत, योग का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है और यह गंभीर ऑटोइम्यून स्थितियों में लिए एक लागत प्रभावी, प्राकृतिक विकल्प प्रदान करता है।
AIIMS ka yah research deshbhar ki mahilaon ke liye bahut upyogi hai
एम्स का यह रिसर्च देश और दुनिया के लाखों बुजुर्गों और महिलाओं के लिए कारगर साबित होगा जो अपना ठीक से इलाज नहीं कर पाते ।उनका इलाज अब योगाभ्यास के जरिए संभव हो सकेगा