नयी दिल्ली/ अदिति सिंह । उच्चतम न्यायालय (Supreme court) के सवाल उठाने के बाद सरोगेसी नियमों में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया है, जिसके बाद यदि पति-पत्नी में से कोई चिकित्सीय समस्या से पीड़ित है तो उन्हें दाता के अंडाणु या शुक्राणु का उपयोग करने की अनुमति होगी। न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा था कि वह इस संबंध में कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले नियमों में संशोधन किया है जिसमें कहा गया था कि ‘सरोगेसी’ (किराए की कोख) से संतान चाहने वाले जोड़ों के पास इच्छुक दाता जोड़े के अंडाणु और शुक्राणु होने चाहिए।
इसमें एक कंडीशन यह भी रखी गई है कि पति-पत्नी में से किसी एक के मेडिकली अनफिट होने की पुष्टि डिस्ट्रिक्ट मेडिकल बोर्ड करेगा। यह बदलाव सिंगल मदर के लिए भी खुशखबरी है। विधवा या तलाकशुदा महिला भी अपने एग के लिए डोनर स्पर्म का इस्तेमाल कर सकती है।
—दंपती अब एग-स्पर्म में से कोई एक बाहर से ले पाएंगे
—संतान चाहने वाले जोड़ों के पास इच्छुक दाता जोड़े के अंडाणु और शुक्राणु होने चाहिए
—पति-पत्नी में से किसी एक के मेडिकली अनफिट होने पर ऐसा होगा
—विधवा या तलाकशुदा महिला भी अपने एग के लिए डोनर स्पर्म का इस्तेमाल कर सकेगी
शीर्ष अदालत की एक पीठ ने पिछले साल दिसंबर में दो दर्जन से अधिक याचिकाकर्ताओं को सरोगेसी के माध्यम से मां बनने के लिए दूसरी महिला के अंडाणुओं का उपयोग करने की अनुमति देते हुए कहा था, ऐसे नियमों से सरोगेसी का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। जनवरी में, न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा था कि कई महिलाओं के शिकायतें लेकर शीर्ष अदालत पहुंचने के बावजूद वह निर्णय क्यों नहीं ले पा रही है।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पिछले महीने कहा था कि सरकार पिछले साल सरोगेसी कानून में लाए गए संशोधन पर पुनर्विचार कर रही है। उल्लेखनीय है कि 14 मार्च, 2023 को सरोगेसी के नियम 7 में किए गए संशोधन के बाद शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। नियम 7 में ‘सरोगेट मां की सहमति और सरोगेसी के लिए समझौते’ और पति के शुक्राणु से दाता के अंडाणुओं के निषेचन के बारे में बताया गया है।
बता दें कि पहले सरोगेसी कानून में नियम था कि बच्चे के लिए एग सेल्स या स्पर्म (गेमेट्स) पति-पत्नी का ही होना चाहिए। 14 मार्च 2023 को संशोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट में 20 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2023 में इन पर सुनवाई की थी।
इसके बाद जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र सरकार इस पर कोई फैसला क्यों नहीं ले पा रही है? इसके जवाब में सरकार की तरफ से एडीशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्य भाटी ने बताया था कि सरकार पिछले साल सरोगेसी कानून में लाए गए संशोधन पर पुनर्विचार कर रही है।
अविवाहित महिलाओं के लिए यह व्यवस्था नहीं
सरोगेसी रेग्युलेशन एक्ट की धारा 2(S) में यह भी बताया गया है कि मां बनने की इच्छुक महिला के तहत 35 से 45 साल की विधवा या तलाकशुदा महिला को परिभाषित किया गया है। यानी किसी अविवाहित महिला को अब भी सरोगेसी के जरिए मां बनने की परमिशन नहीं है। इस नियम के खिलाफ भी मामला विचाराधीन है, जिसमें कहा गया है कि यह नियम भेदभावपूर्ण है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मां बनना विवाह संस्था में रहते हुए ही आदर्श है। इसके बाहर रहकर मां बनना आदर्श नहीं। हमें इस बात की चिंता है क्योंकि हम बच्चे की भलाई की बात कर रहे हैं। हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं। हमें विवाह संस्था को संरक्षित करना होगा। इसके लिए आप हमें कट्टरपंथी कह सकते हैं, हमें यह मंजूर होगा।