नई दिल्ली /अदिति सिंह : 1920 में जन्मी देश की दूसरी सबसे पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (बादल) को दिल्ली में फिर से ताकत मिलने जा रही है। पार्टी को नया सारथी मिल गया है। रविवार को दोपहर बाद इसका औपचारिक ऐलान हो जाएगा। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की मौजूदगी में दिल्ली में दो सियासी दलों का विलय हो जाएगा। इसके साथ ही पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना की घर वापसी भी हो जाएगी। हालांकि इस पंथक मिलन का बड़ा विरोध भी हो रहा है। बता दें कि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (बादल) की पराजय के बाद चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक पार्टी के करीबियों ने किनारा कर लिया है। कुछ ने पाला बदल लिया तो कुछ ने नई पार्टी एवं गुट बनाकर अलग राह पकड़ ली।
-अकाली दल दिल्ली और अकाली दल बादल का आज होगा विलय
-शिरोमणि अकाली दल को फिर से दिल्ली में मिलेगी ताकत
-सरना बंधु उठाएंगे सुखबीर बादल की पार्टी का झंडा, आज ऐलान
-1999 में अलग हुए थे सरना, बना ली थी अपनी नई पार्टी
नतीजा यह हुआ कि इस पुरानी पार्टी का झंडा उठाने वाला भी नहीं रहा। दिल्ली में सिख भाईचारा की बहुतायत है और अकाली दल को मानने वाले भी अधिक हैं, इसलिए पार्टी ने दिल्ली पर विशेष जोर दिया है। पार्टी को कद्दावर और चर्चित सिख नेता की तलाश थी, जो अब पूरी हो गई। शिरोमणि अकाली दल ( दिल्ली) के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना, अकाली दल के नए सारथी बनेंगे।
इसके बाद परमजीत सिंह सरना की अगुवाई वाला शिरोमणि अकाली दल का विलय अकाली दल बादल में हो जाएगा। वैसे भी वर्ष 1999 तक परमजीत सिंह सरना अकाली दल में ही थे। सरना ने बगावत करके दिल्ली में अपनी नई पार्टी बना ली थी। कहते हैं कि उस समय सरना शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष गुरचरण सिंह टोहड़ा के करीबी के तौर पर समझे जाते थे। टोहडा और प्रकाश सिंह बादल के बीच में विवाद होने के चलते सरना ने बादल का साथ छोड़ दिया था और दिल्ली में अपनी अलग पार्टी बना ली थी। अब लगभग 23 साल के बाद सरना के द्वारा घर वापसी की जा रही है। इस बारे में सारी बातें शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और सरना बंधुओं में तय हो चुकी है।
गौरतलब है कि 2021 के दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चुनाव जीतने के बाद शिरोमणि अकाली दल को दिल्ली में बड़ा झटका लगा था। बादल के सबसे करीबी एवं दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा पार्टी को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। सिरसा के जाने के बाद अकाली दल के जीते हुए 24 कमेटी सदस्यों ने भी अपना अलग गुट बनाते हुए शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली स्टेट) नई पार्टी बना ली। सुखबीर बादल जब तक कुछ कर पाते, पूरी पार्टी बिखर गई। इसके बाद पार्टी ने सबसे तजुर्बेकार नेता जत्थेदार अवतार सिंह हित को पार्टी की दिल्ली इकाई की कमान सौंपी। लेकिन, 10 सितम्बर को हित के निधन के बाद वह पद भी खाली हो गया। दिल्ली में अकाली दल की नेतृत्व करने वाला बड़ा नेता मौजूद नहीं है। हालांकि जीते हुए दो कमेटी सदस्यों के तौर पर बीबी रंजीत कौर और सुखविंदर सिंह बब्बर मौजूद हैं। लेकिन पार्टी अपने पुराने कद और हैसियत को बनाना चाहती है। यही कारण है कि सरना बंधुओं से संपर्क कर मनाया और पार्टी की कमान संभालने के लिए तैयार किया। एक तरह से सरना बंधुओं के लिए भी यह बहुत बड़ा सम्मान की तरह है। सुखबीर सिंह बादल की मंशा थी कि दिल्ली का कोई बड़ा सिख नेता उनकी पार्टी का नेतृत्व संभाले। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गुरू पंथ की चढदी कला और बोलबोले के लिए पंथक मेल बहुत जरूरी है। आज के समय में पंथ को दरपेश आ रही चुनौतियों से लडऩे एवं मुकाबले तथा गुरु की मर्यादा एवं आन बान शान के लिए शिरोमणि अकाली दल दिल्ली एवं अकाली दल की पंथक एकत्रता आवश्यक है।
पंथक मिलन का विरोध भी हो रहा
दो सियासी दलों का पंथक मेल भी बहुत आसान नहीं रहा। इसका खुलासा होने के बाद जमकर विरोध भी हो रहा है। अब तक अकाली दल का झंडा उठाने वाले ही पंथक मिलन पर ऐतराज जता रहे हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष और अकाली दल के पूर्व अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने तो खुलेआम मिलन का विरोध किया है। साथ ही इसके एवज में सरना बंधुओं द्वारा 10 करोड़ रुपये की पेशगी का भी आरोप लगाया है। बावजूद इसके दो पंथक दिग्गज रविवार से एक झंडे के नीचे हो जाएंगे।