—दिल्ली से पंजाब तक शिरोमणि अकाली दल के खेमें में सुगबुगाहट तेज
—95 साल के प्रकाश सिंह बादल को पार्टी बनाएगी चेहरा : सूत्र
—कृषि बिलों के चलते ही टूटा था गठबंधन, अकाली दल हुई थी अलग
—भाजपा के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी नजदीकियां बढी
—भाजपा के दोनों हाथ में लडडू, पार्टी अकेले चुनाव लडने का कर चुकी है ऐलान
नई दिल्ली /खुशबू पाण्डेय : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गुरु पूरब के दिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद पंजाब में भाजपा के गठबंधन साथी रहे शिरोमणि अकाली दल के बीच भरत—मिलाप (गठबंधन) होने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसी कानून को पास करने के बाद ही भाजपा और अकाली दल के बीच तल्खी बढ गई थी और दोनों दलों के बीच सियासी तलाक हो गया था। लेकिन कृषि कानूनों के वापस लेने के साथ ही माना जा रहा है कि अब अकाली दल और भाजपा का टूटा गठबंधन दोबारा जुड सकता है। इस बात का इशारा शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ सूत्र भी कर रहे हैं। क्योंकि कृषि बिलों के खिलाफ केंद्र सरकार में मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था, और उसके बाद लगातार अकाली दल और भाजपा के बीच तल्खी बढ गई थी। भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद अकाली दल ने विधानसभा चुनाव से पहले मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी बसपा से गठबंधन कर लिया है। लेकिन, जमीनी सभी सर्वे एवं अनुमान यह बता रहे हैं कि अकाली दल की स्थिति ठीक नहीं है। खासकर नशा एवं श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर शिरोमणि अकाली दल 1997 के बाद अब 2022 के चुनाव में मुददा बनते नजर आ रहे हैं। अकाली दल के प्रति लोगों के गुस्से के कारणों को भी अकाली नेता अच्छे से समझते हैं। यही कारण है कि तीन दिन पहले अमृतसर में एक कार्यक्रम में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने संगतों को संबोधित करते हुए कहा था कि मेरे से गलतियां हुई हैं, लेकिन उसकी सजा उनकी पार्टी अकाली दल को न दी जाए। भाजपा से अलग होने के बाद चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के एक पूर्व सहयोगी को शिरोमणि अकाली दल ने अपनी चुनाव रणनीति को बनाने के लिए पिछले समय पार्टी के साथ जोडा था। लेकिन अब जानकारी आ रही है कि इस रणनीतिकार से अकाली दल ने अपना समझौता तोड लिया है। इसके पीछे पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद अकाली दल की उम्मीदों को लगे बडे झटके को वजह माना जा रहा है। अकाली हल्कों में इस बात को लेकर भी मायूसी है कि सुखबीर बादल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पंजाब के लोगों में वो उत्साह नहीं है जो प्रकाश सिंह बादल के समय में होता था। इसलिए 95 साल की उम्र में अभी भी प्रकाश सिंह बादल को विधानसभा चुनाव लडाया जा सकता है। इस बाद का इशारा खुद सुखबीर बादल ने किया है। यदि अकाली दल प्रकाश सिंह बादल को आगे करता है तो भाजपा से पुराने संबंधों के आधार पर अकाली—भाजपा का पुर्न गठबंधन होने की प्रबल संभावना है। सूत्रों की माने तो हो सकता है कि सुखबीर सिंह बादल को केंद्र में मंत्री बना दिया जाए और प्रकाश सिंह बादल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए। अब तक के हुए सभी सर्वें में अकाली दल पीछे दिख रही है। आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस पार्टी के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बनकर दिख रही है। सूत्रों का दावा है कि अगर प्रकाश सिंह बादल आगे हाथ बढाते हैं तो भाजपा हाईकमान गठबंधन कर सकता है। भाजपा और अकाली दल के बीच सबसे पुराना 1996 से लेकर 2020 तक गठबंधन रहा। लेकिन इस बीच पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी भाजपा के करीब आ चुके हैं। उनके रिश्ते भाजपा हाईकमान से पुराने हैं, यह भी जगजाहिर है। शुक्रवार को सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि बिलों के वापस लेने के ऐलान के बाद अमरिंदर सिंह ने भी साफ कर दिया है वह भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लडेंगे। ऐसी स्थिति में भाजपा दोनों तरफ से फायदे में होगी। पंजाब में चौथे नंबर पर चल रही भाजपा के दोनों हाथ में लडडू है। अगर अकाली दल समझौता नहीं हुआ तो पंजाब लोक कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह गठबंधन के लिए भाजपा के साथ तैयार है। वैसे पंजाब भाजपा ने पहले ही अकेले सभी सीटों पर चुनाव लडने का ऐलान कर चुकी है। पिछले दिनों दिल्ली में हुए भाजपा कार्यसमिति की बैठक में पंजाब भाजपा ने यह प्रस्ताव भी रखा था।