—निरंकारी संत समागम में बोली सदगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज
—स्वयं की पहचान के लिए परमात्मा की पहचान ज़रूरी है : माता सुदीक्षा
नई दिल्ली/ खुशबू पाण्डेय : संत निरंकारी मिशन की प्रमुख सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि यदि हम वास्तव में मनुष्य कहलाना चाहते हैं तो हमें मानवीय गुणों को अपनाना होगा। इसके विपरीत यदि कोई भी भावना मन में आती है तो हमें स्वयं का मूल्यांकन करना होगा और सूक्ष्म दृष्टि से मन के तराजू़ में तोलकर उसे देखना होगा। ऐसा करने से हमें यह एहसास होगा कि हम कहां पर गलत हैं। निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज महाराष्ट के 54वें प्रादेशिक निरंकारी सन्त समागम को संबोधित कर रहीं थी।
सत्गुरू माता सुदीक्षा जी ने कहा कि यथार्थ मनुष्य बनने के लिए हमें हर किसी के साथ प्यार भरा व्यवहार, सबके प्रति सहानुभूति, उदार एवं विशाल होकर दूसरे के अवगुणों को अनदेखा करते हुए उनके गुणों को ग्रहण करना होगा। सबको समदृष्टि से देखते हुए एवं आत्मिक भाव से युक्त होकर दूसरों के दुख को भी अपने दुख के समान मानना होगा। इसके साथ ही और भी जो मानवीय गुण हैं उनको भी धारण करने से जीवन सुखमयी व्यतीत होगा।
माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि-मनुष्य स्वयं को धार्मिक कहता है और अपने ही धर्म के गुरु-पीर-पैगम्बरों के वचनों का पालन करने का दावा भी करता है। परंतु वास्तविकता तो यही है कि आपकी श्रद्धा कहीं पर भी हो, हर एक स्थान पर मानवता को ही सच्चा धर्म बताया गया है और ईश्वर के साथ नाता जोड़कर अपना जीवन सार्थक बनाने की सिखलाई दी गई है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है और प्रभु प्राप्ति के लिए उम्र का कोई तकाज़ा नहीं होता। किसी भी उम्र का मनुष्य ब्रह्मज्ञानी सन्तों का सान्निध्य पाकर क्षणमात्र में प्रभु-परमात्मा की पहचान कर सकता है।
तीन दिवसीय संत समागम का सीधा प्रसारण निरंकारी मिशन की वेबसाईट एवं संस्कार टी.वी. चैनल के माध्यम द्वारा हुआ। समस्त भारत वर्ष तथा विदेशों में लाखों निरंकारी भक्तों के अतिरिक्त श्रद्धालु सज्जनों ने घर बैठे इस सन्त समागम का भरपूर आनंद प्राप्त किया।
समागम में सतगुरू माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि ईश्वर को हम किसी भी नाम से सम्बोधित करे वह तो सर्वव्यापी है और हर किसी की आत्मा इस निराकार परमात्मा का ही अंश है। स्वयं की पहचान के लिए परमात्मा की पहचान ज़रूरी है क्योंकि ब्रह्मानुभूति से ही आत्मानुभूति सम्भव है। स्थिर परमात्मा से जीवन में स्थिरता, शान्ति और सन्तुष्टि जैसे दिव्य गुण आते हैं। परमात्मा पूरे ब्रह्माण्ड का कर्ता है इसकी अनुभूति हर कार्य को सहजता से स्वीकार करने की अनुभूति देती है। परमात्मा का आधार लेने से जीवन में उथल-पुथल सन्तुष्टि में परिवर्तित हो जाती है।
हमें इंद्रियों में उलझना नहीं है, उन्हें अपने नियंत्रण में रखना है : सतगुरू
सतगुरू माता ने कहा कि अपने दैनिक जीवन में हर परिस्थिति का आकलन करने के लिए एवं उचित ढंग से शरीर का संचालन करने के लिए ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करना है और इन इंद्रियों के अधीन नहीं रहना हैं। इसी पर हमारे मन का कर्म निर्भर करता है। यदि इंद्रियां हमारे नियंत्रण में है तब हम उनका उचित सदुपयोग कर पाते हैं इसलिए हमें इंद्रियों में उलझना नहीं है अपितु उन्हें अपने नियंत्रण में रखना है। इस मौके पर सेवादल रैली का आयोजन किया गया। इसमें भिन्न-भिन्न प्रांतों से आए सेवादल के भाई-बहनों ने भाग लिया। रैली में शारीरिक व्यायाम के अतिरिक्त खेलकूद तथा मलखम्ब जैसे साहसी करतब दिखाए गए। साथ ही साथ मिशन की सिखलाई पर आधारित लघु नाटिकायें भी प्रस्तुत की गई।
मिशन की अहम सिखलाई है – नर सेवा, नरायण पूजा
इस मौके पर सतगुरू माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि – सारी मानवता को अपना परिवार मानते हुए, अहंकार को त्यागकर, समय की ज़रूरत के अनुसार, मर्यादा एवं अनुशासन में रहकर मिशन द्वारा वर्षों से सेवा का योगदान दिया जा रहा है। सेवा करते हुए, हर किसी को प्रभु का अंश मानकर उसकी सेवा करनी चाहिए क्योंकि मानव सेवा परमात्मा की ही सेवा है। जो मिशन की अहम सिखलाई है – नर सेवा, नरायण पूजा। आखिरी दिन कवि दरबार सजाया गया, जिसका शीर्षक ‘स्थिर से नाता जोड़ के मन का, जीवन को हम सहज बनायें’ था। इस विषय पर आधारित कई कवियों ने अपनी कवितायें मराठी, हिंदी, सिंधी, गुजराती, पंजाबी एवं भोजपुरी आदि भाषाओं के माध्यम से प्रस्तुत की।